Saturday, 18 January 2025

मसला रोटी दा.....



बहुत खास है डबवाली का राजू वैष्णों ढाबा, इसे चलाने वाले लोगों की पाकिस्तान में हवेली थी

43 साल का इतिहास समेटे है यह ढाबा, मोगा जिले के धर्मकोट कस्बे में एक टी स्टाल से शुरु हुआ था सफर

ढाबे की कडी, साग मक्खनी और प्याज रोटी के दीवाने हैं लोग


डबवाली :

यह कहानी है रोटी दी। सफर शुरु हुआ था पाकिस्तान के मिंटगुबंरी से। एक परिवार जो ड्राई फ्रूट का बड़ा कारोबारी था। बेहद खूबसूरत सी हवेली थी। शान से रोटी खाता था। घर का मुखिया जरुरतमंदों का उपचार भी किया करता था। सभी उन्हें वैद्य जी कहते थे। किसी जमाने पाकिस्तान से विस्थापित होकर परिवार भारत पहुंचा था। रोटी के लिए पंजाब के मोगा जिले के कस्बाई क्षेत्र धर्मकोट में पीपल के पेड़ तले चाय की स्टाल लगाई। रोटी के लिए सफर परिवार को सिरसा के डबवाली लेआया। परिवार के सदस्य ढाबा चलाते हैं। जोकि काफी फेमस है। यह ढाबा डबवाली के इतिहास से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं, मसला रोटी दा....।

बात कर रहे हैं चौटाला रोड पर बठिंडा चौक के समीप स्थित राजू वैष्णों ढ़ाबा की। जिसे चलाता है गिरधर परिवार। पता है कभी यह ढाबा पंजाब बस अड्डा के समीप चलता था। बात करीब 1977 की है, दिवंगत उल्फत राय गिरधर ने चौटाला रोड पर बस अड्डा के समीप सुभाष टी स्टाल के बैनर तले टी स्टाल शुरु हो गई। 1982-83 में उल्फत राय गिरधर ने अपने पिता वैद्य जी रामदयाल गिरधर के नाम से वैद्य जी दी हट्टी लिखकर राजू वैष्णों ढाबा शुरु किया। बड़े बेटे राजकुमार उर्फ राजू गिरधर के नाम से ढाबा था तो बड़ा बेटा भी हाथ बंटाने लगा। पिता रोटियां सेंकते थे, सब्जी बनाते थे तो महज 13 वर्ष का राजू बर्तन धोया करता था। ग्राहकों को रोटी-सब्जी दिया करता था। फिर मंझला बेटा अशोक गिरधर उर्फ रिंकू, सबसे छोटा बेटा मनीष उर्फ मोनू भी हाथ बंटाने लगे। उस वक्त रोडवेज कर्मचारी तथा लक्कड़ मंडी के व्यापारी ग्राहक होते थे।

----

प्याज की रोटी और कड़ी है फूड लवर की पसंद

महज 2 रुपये में भरपेट भोजन मिल जाता था इस ढाबे पर। दाल-रोटी, आलू-छोले बनते थे। दो-दो रुपये जोड़कर गिरधर परिवार सफलता की सीढ़ियां चढ़ता गया। वर्ष 1996 में ढाबा बठिंडा चौक के समीप शिफ्ट हो गया। तब से वहीं है। हर रोज करीब 200 से 250 लोग इस ढाबे पर भोजन करते हैं। ढाबे की कड़ी, साग मक्खनी, दाल तड़का, प्याज की रोटी काफी मशहूर है। सुबह करीब नौ से रात्रि 11 बजे तक यह ढाबा खुलता है। 43 वर्ष हो गए इस ढाबे को डबवाली में चलते हुए। यह ढाबा अब डबवाली के इतिहास में दर्ज हो गया है। बेशक आज ढाबा शुरु करने वाले उल्फत राय गिरधर हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके तीनों बेटे वैद्य जी दी हट्टी यानी राजू वैष्णों ढाबे रुपी उनके लगाए पौधे को सींच रहे हैं।

----

60 रुपये महीने में करता था नौकरी

राजकुमार उर्फ राजू गिरधर बताते हैं कि दादी विद्या देवी अक्सर कहानी सुनाती थी। वो कहती थीं कि पाकिस्तान में बहुत बड़ा कारोबार था। हवेली जो थी, वह ड्राई फ्रूट से भरी रहती थी। पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए तो उस वक्त मेरे पिता उल्फत राय महज चार वर्ष के थे। धर्मकोट में पनाह मिली थी। पिता ने 10वीं करने के बाद वहीं पीपल के पेड़ तले चाय का खोखा लगाया था। मसला रोटी दा डबवाली ले आया। कहानी खत्म करने से पहले बता दूं कि गिरधर परिवार को सफलता यूं ही नहीं मिली। क्यांेकि वह समय भी था, जब राजकुमार गिरधर डबवाली के मीना बाज़ार में 60 रुपये महीना तक नौकरी करते थे। करीब दो साल तक नौकरी की। बाद में पिता ने ढाबा शुरु किया, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।


रिपोर्ट:

डीडी गोयल

आवाज़ न्यूज नेटवर्क

मो. 8059733000

1 comment:

संत बाबा श्री रामगिर जी महाराज की जीवन गाथा

विशाल वार्षिक फाल्गुन मेले के अवसर पर संत बाबा श्री रामगिर जी महाराज की जीवन गाथा -13 मार्च को गांव पन्नीवाला रुलदू में स्थित समाध स्थल पर ल...