235 साल पुराना मटदादू गांव सुर्खियों में आया, महिला सरपंच ने नशा रोकने के लिए आइपी कैमरे लगाए
महानगरों की सुरक्षा के लिए लगने वाले सीसीटीवी कैमरे पहली बार हरियाणा के किसी गांव में लगेडबवाली:
करीब 235 साल पुराना गांव मटदादू सुर्खियों मंे आ गया है। वजह है गांव की महिला सरपंच गगनदीप कौर। उन्होंने गांव में महानगरों की सुरक्षा में प्रयोग होने वाले आइपी, हयूमन डिटेक्शन तथा हाइ डेफिकेशन कैमरे लगाए हैं। ऐसा इसलिए कि गांव में नशे तथा अपराध पर नियंत्रण रहे। बताया जाता है कि गांव मटदादू नशे की दृष्टि से संवेदनशील गांव है। यहां करीब 80 से ज्यादा नशा करने वाले लोग हैं। युवाओं की मौत हो रही है। ऐसे में नशा तस्करों पर निगरानी रखने के लिए पंचायत ने बड़ा कदम उठाया है। गांव मटदादू अब पूरी तरह से तीसरी आंख के पहरे में महफूल रहेगा।
पहली बार गांव में महानगरों (मेट्रो) की तर्ज पर आईपी, हाई डेफिनेशन, ह्यूमन डिटेक्शन नेटवर्क कैमरे लगाए गए हैं। सरपंच गगनदीप कौर ने बताया कि गांव के सभी प्रवेश द्वारों पर और डबवाली-ऐलनाबाद स्टेट हाइवे रोड पर भी लगभग 30 सेट अप लगाए गए हैं। गांव के हर मुख्य चौक-चौराहे, फिरनी, गली, लाईब्रेरी, स्कूल, धार्मिक स्थल को कवर किया गया है। उन्होंने बताया कि गांव में सभी कैमरों की डिस्प्ले के लिए एक कंट्रोल रूम भी बनाया जाएगा, हर कैमरे में एक सिम चिप लगी होगी, जिससे वह इंटरनेट के साथ जुड़ा होगा। पूरे गांव को सीसीटीवी कैमरा जोन बनाए जाने से गांव में आपराधिक घटनाओं में कमी होगी और नशा तस्करों पर कड़ी नजर रहेगी। उन्होंने बताया कि तीसरी नजर से कोई भी अपराधी बच नहीं सकेगा। सरपंच ने बताया कि कैमरे की क्वालिटी बहुत बढिय़ा है और कैमरे में ह्यूमन डिटेक्शन व वायस कैप्चर की भी सुविधा है। उन्होंने बताया कि गांव में करीब 100 से ज्यादा कैमरे लगाए गए हैं।
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सात मंजिला मठ होने के कारण नाम पड़ा था मठदादू
डबवाली से करीब 21 किलोमीटर दूरी पर स्थित मटदादू गांव का सही नाम है मठदादू। यह नाम अंग्रेजों ने गांव में बने एतिहासिक मठ के कारण दिया था। ग्रामीण बताते हैं कि गांव की सीमा निर्धारित करने के लिए अंग्रेज अधिकारी शामिल हुए थे। गांव के नाम पर चर्चा हुई तो करीब सात मंजिला मठ दिखाई दिया। अंग्रेजों ने पूछा कि यह क्या है? ग्रामीणों ने बताया कि मठ है। अधिकारी ने अगला सवाल किया कि किसका मठ है, तो पता चला कि संत दादू दयाल का है। अधिकारी ने उसी वक्त गांव को मठदादू कहकर संबोधित किया। गांव की स्थापना 1790 के आस-पास बताई जाती है। करीब 231 साल पूर्व बसे गांव का आंकलन वर्तमान परिस्थितियों से करें तो रकबा 28156 कनाल 15 मरले है। वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार गांव की कुल आबादी करीब 3450 है। जिसमें 1787 पुरुष तथा 1663 महिलाएं शामिल है।
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पाकिस्तान के जंबर गांव से जुड़ा है इतिहास
गांव मठदादू का इतिहास पाकिस्तान के जिला कसूर की तहसील पत्तो के गांव जंबर कलां, जंबर खुर्द से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण गुरमेल सिंह बताते है कि गांव मठदादू की जमीन बठिंडा जिला के गांव सेखू के ग्रामीणों की थी। उस वक्त अंग्रेजों को लगान देना पड़ता था। अकाल होने के कारण सेखू के ग्रामीण लगान नहीं दे सके अंग्रेजों ने जमीन कुर्क कर ली थी। बुजुर्ग बताया करते थे कि सेखू के ग्रामीणों की रिश्तेदारी उस वक्त के जिला लाहौर की तहसील चुन्नियां के तहत आने वाले गांव जंबर में थी। जंबर समृद्ध इलाका था। रिश्तेदारों ने सूचित किया कि अगर जंबर के लोग चाहे तो लगान अदा करके जमीन पा सकते है। जंबर के लोगों ने ऐसा ही किया, अंग्रेजों को लगान अदा करके जमीन हासिल कर ली। इसलिए मठदादू के लोग नाम के पीछे जंबर शब्द का इस्तेमाल करते है।
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सात मंजिला था मठ, क्रांतिकारी लेते थे पनाह
सरपंच प्रतिनिधि रणदीप सिंह बताते है कि अक्सर बुजुर्ग कहानी सुनाया करते थे कि मठ सात मंजिला था। सबसे ऊपरी मंजिल पर मशाल जलती थी। जो बहुत दूर से भी दिखाई देती थी। बताते है कि ऊंचाई ज्यादा होने के कारण छाया दो किलोमीटर दूर स्थित गांव मलिकपुरा में दिखाई देती थी। बुजुर्गों का यह भी कहना था कि उपरोक्त मठ में क्रांतिकारी पनाह लेते थे। जिसे अंग्रेजो विद्रोही बताते थे। इस वजह से अंग्रेजों ने मठ का बहुत बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त कर दिया था।
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