Sunday, 12 January 2025

लोहड़ी


लोहड़ी
 मनाने की परंपरा मुगल शासक अकबर के जमाने से चली आ रही है। जब दुल्ला भट्टी नामक एक डाकू ने दो सगी बहनों की इज्जत बचाते हुए शादी करवाई थी। कन्यादान में सवा सेर शक्कर डाली थी। बेटियों की आबरु बचाकर डाकू इतिहास के पन्नों में सदा-सदा के लिए दर्ज हो गया। लोहड़ी पर जो भी लोकगीत हैं, सभी में दुल्ला भट्टी के किस्से का जिक्र जरुर है। वैसे तो भारत त्यौहारों का देश है। हमारी संस्कृति कहती है कि बेटियों के बिना ये त्यौहार अधूरे हैं। खासकर लोहड़ी जैसा त्यौहार जो सीधा नारी सम्मान से जुड़ा है। जमाने के साथ उसमें परिवर्तन करके त्यौहार के मात्थे पर नवविवाहित जोड़ों तथा बेटे के जन्म का टिका मड दिया। हम खुद ही संस्कृति को ठेस पहुंचाने पर उतारु हो गए थे। लेकिन हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि एक बार फिर से बदलाव आया है। बेटियों की लोहड़ी मनाई जाने लगी है। वर्ष 2017 में हरियाणा के जिला सिरसा में पंजाबी मूल की तत्कालीन उपायुक्त शरणदीप कौैर बराड़ ने बड़ी पहल की थी। गांव, ब्लाक से लेकर जिला स्तर तक बड़े कार्यक्रम आयोजित करके धीयां दी लोहड़ी मनाई गई। दूसरी बेटी को जन्म देने वाली करीब पांच सौ महिलाओं को सम्मानित किया गया था। कार्यक्रम के जरिए शरणदीप कौर बराड़ ने समाज को बेटियों के प्रति सोच बदलने का पैगाम दिया था। जिसके सकारात्मक परिणाम नजर आ रहे हैं। गली-मोहल्लों में लोग बेटी के जन्म पर लोहड़ी मनाने लगे हैं। इसके अलावा हरियाणा सरकार के आदेश पर प्रदेश के विभिन्न जिलों ने अपने-अपने स्तर पर बेटियों की लोहड़ी पर कार्यक्रम आयोजित किए थे।

अब पाकिस्तान में है इतिहासिक इलाका
इतिहासकार लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की कहानी से जोड़ते हैं। लोहड़ी पर प्रचलित सभी लोकगीत दुल्ला भट्टी से ही जुड़े हैं। बॉलीवुड तक गीतों का सफर जारी है। यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं। इतिहासकारों के अनुसार दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय संदल बार नाम जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था। जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी भी करवाई और उनके शादी के सभी व्यवस्था भी करवाई। दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था।

बसंत के स्वागत का त्यौहार भी है लोहड़ी
लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता हैं। लोहड़ी त्यौहार के उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं जो की पंजाब के त्यौहार से जुडी हुई मानी जाती हैं। कई लोगो का मानना हैं कि यह त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन के रूप में मनाया जाता हैं। आधुनिक युग में अब यह लोहड़ी का त्यौहार सिर्फ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में ही नहीं अपितु बंगाल तथा उडिय़ा लोगों द्वारा भी मनाया जा रहा हैं।

समय ने बदल दिया त्यौहार का स्वरुप
पहले लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएं लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इक्ट्ठा करना शुरु कर देते थे। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गांव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते थे। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता था। तिल, रेवड़ी, मक्की के भूने दाने अग्नि की भेंट किए जाते थे। गज्ज़क, मूंगफली के साथ-साथ उपरोक्त चीजें प्रसाद के रूप में उपस्थित लोगों को बांटी जाती थी। घर लौटते समय लोहड़ी में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में घर पर लाने की प्रथा भी थी। लेकिन समय ने त्यौहार का स्वरुप बदल दिया है। अब लगभग हर घर के आगे निजी रुप से लोहड़ी मनाई जाती है। लोग तिल, रेवड़ी, मक्की के दाने तो अग्नि भेंट करते हैं। लेकिन लोहड़ी मांगने कोई नहीं आता। न ही गली में एक जगह लोहड़ी मनती है।

अब लोकगीत नहीं, डीजे बजता है
पहले लोहड़ी पर महिलाएं लोकगीत गाती थी। पंजाबी मुटियारेंगिद्दे से धरती हिला देती थीं। अब यह बात कहानी बन गई है। चूंकि युवा पीढ़ी को लोक गीत नहीं आते। तो वे पॉलीवुड गानों का सहारा लेते हैं। पूरी रात ऊंची आवाज में डीजे बजता है। नाम गाना चलता है। मस्ती इतनी बढ़ जाती है कि रंग में भंग शुरु हो जाता है। परंपरा निभाने की बात तो दूर, लोहड़ी पर ही ढिशुम-ढिशुम शुरु हो जाती है। हर बार भिन्न-भिन्न जगहों से ऐसे कई शर्मसार करने वाले मामले सामने आते हैं।


लोहड़ी के लोकगीत
लोहड़ी पर अनेक लोक-गीतों के गायन का प्रचलन है। सुंदर-मुंदरिए, तेरा की विचारा-दुल्ला भट्टी वाला... शायद सबसे लोकप्रिय गीत है जो इस अवसर पर गाया जाता है। पूरा गीत इस प्रकार है।
सुंदर मुंदरिए- हो तेरा कौन विचारा-हो 
दुल्ला भट्टी वाला-हो 
दुल्ले ने धी ब्याही-हो 
सेर शक्कर पाई-हो 
कुडी दे बोझे पाई-हो 
कुड़ी दा लाल पटाका-हो 
कुड़ी दा शालू पाटा-हो 
शालू कौन समेटे-हो 
चाचा गाली देसे-हो 
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो 
जिमींदारा सदाए-हो 
गिन-गिन पोले लाए-हो 
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया - हो! 


मांगी जाती थी लोहड़ी
लोहड़ी मांगने के लिए बच्चों की टोलियां गलियों में निकलती थी। जो गीत गाकर लोहड़ी मांगते थे। यदि कोई लोहड़ी देने में आनाकानी करता है तो ये मसखऱे बच्चे ठिठोली भी करते थे। अब यह नहीं होता। पहले ऐसे मांगी जाती थी लोहड़ी
पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढेगा हाथी
हाथी उत्ते जौं तेरे पुत्त पोत्रे नौ! 
नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई 
टेर नी माँ टेर नी 
लाल चरखा फेर नी! 
बुड्ढी साँस लैंदी है 
उत्तों रात पैंदी है 
अन्दर बट्टे ना खड्काओ 
सान्नू दूरों ना डराओ! 
चारक दाने खिल्लां दे 
पाथी लैके हिल्लांगे 
कोठे उत्ते मोर सान्नू 
पाथी देके तोर!

प्रस्तुति ::
डीडी गोयल
आवाज़ न्यूज़ नेटवर्क
मो. 8059733000

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