पिता ने दिया गुर, बेटे ने मेहनत की भट्ठी में खुद को साबित किया, डबवाली की रोस्टेड बर्फी विदेश में हिट
12 साल की उम्र में कश्मीरी लाल बनाने लगे थे रोस्टेड बर्फी, पिता के साथ अब हाथ बंटाते हैं रोहित गर्गअब तक लोग यही जानते हैं कि डबवाली जो है, वह कणक, किन्नू, कपास, मोडिफाइ जीप के लिए मशहूर है। ऐसा हरगिज नहीं, डबवाली में जो रोस्टड बर्फी बनती है, वो सात समंदर पार पहुंचती है। मिठास की दुनियां में डबवाली को इस स्थान पर लेजाना आसान नहीं था। इसकी वजह है कश्मीरी लाल गर्ग की अथक मेहनत। हर बंदा बचपन जीना चाहता है, लेकिन कश्मीरी लाल गर्ग महज 12 साल की उम्र में बर्फी तैयार करने लगे थे। मेहनत की भट्ठी में खुद को जलाया, तब जाकर यह रोस्टेड बर्फी देसी-विदेशी लोगों के मुंह की मिठास बनी है।
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ना इंटरनेट मीडिया का सहारा, न कोई प्रमोशन
59 वर्षीय कश्मीरी लाल गर्ग ने अपनी रोस्टड बर्फी की मिठास अमेरिका तक पहुंचाने के लिए इंटरनेट मीडिया का सहारा नहीं लिया या फिर कोई प्रमोशन नहीं की। कालोनी रोड पर गर्ग स्वीट्स के नाम पर दुकान चलाने वाले इस शख्स के हाथों में गजब का जादू है। उनके हाथों से बनी मुलायम बर्फी जीभ पर रखते ही हर कोई इनका दीवाना हो जाता है। पिछले वे 12 साल की उम्र में बर्फी तैयार करने लगे थे। पिछले 34 साल से दुकान कर रहे हैं। डबवाली में आने वाला ऐसा कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं है, जो रोस्टड बर्फी न खाए। ट्रांसफर होने के बाद तक अधिकारी कश्मीरी लाल गर्ग को याद करते हुए बर्फी मंगवाते हैं।
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मांग इतनी की आपूर्ति नहीं कर पाते
कश्मीरी लाल हर रोज 25 से 30 किलोग्राम बर्फी तैयार करते हैं। जो हाथों-हाथ बिक जाती है। त्यौहारी सीजन में यह मांग 10 गुणा बढ़ जाती है। लेकिन वे आपूर्ति नहीं कर पाते। तो लोगों ने फोन पर ही बुकिंग करवानी शुरु कर दी है। इसके अलावा शहर में होने वाले शादी या अन्य समारोह में गिफ्ट पैकिंग के लिए उनकी बनी बर्फी ही पहली पसंद हैं।
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यूं तैयार होती है बर्फी, मूल्य है 500 रुपये
रोस्टड बर्फी में खोया, चीनी तथा पिस्ता डाला जाता है। पहले खोया तैयार होता है। खोये को सेंकते हैं। चीनी का मिश्रण करने के बाद जमाव किया जाता है। बाद में छोटे-छोटे पीस कर लिए जाते हैं। कश्मीरी लाल एक किलोग्राम बर्फी को 500 रुपये में बेचते हैं।
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पहले साधु राम, फिर कश्मीरी लाल, अब रोहित गर्ग
बर्फी तैयार करना खानदानी पेशा है। कश्मीरी लाल के पिता साधु राम बर्फी तैयार करते थे। वे अपने पिता से ही गुर सीखते हुए बढ़े हुए हैं। आज भी शहर में उनसे ज्यादा साधु राम की बर्फी मशहूर है। बेशक उन्हें कश्मीरी लाल तैयार करते हैं। यह कला अब उनका बेटा रोहित गर्ग सीख रहा है। मतलब एक परिवार ने डबवाली की बर्फी को ब्रांड बनाने के लिए तीन पीढ़ियां लगा दी। डबवाली से विदेशों में बसे लोग इसी नाम से ही बर्फी मंगवाते हैं। कश्मीरी लाल गर्ग तथा उनके बेटे रोहित गर्ग का कहना है कि ऑर्डर पर मुंबई तक उन्होंने खुद बर्फी भेजी है। जबकि डबवाली के निवासी विदेशों में बसे अपने रिश्तेदारों को रोस्टड बर्फी भेजते हैं। उनकी बनाई बर्फी 15 दिन तक खराब नहीं होती।
कंटेंट राइटर:ः
डीडी गोयल
आवाज़ न्यूज नेटवर्क
मो. 8059733000
विरासत ए डबवाली हमारी उम्र के लोगो ने उनकी तीन पीढ़ियों को देखा है गांधी चौक से कालोनी रोड तक का सफर
ReplyDeleteमेहनत हिम्मत ईमानदारी की मिसाल ओर स्वाद का अनूठा संगम जिन्दाबाद
जिंदगी जिन्दाबाद ।।
"डबवाली की रोस्टेड बर्फी: परिवार की मेहनत और स्वाद का मिश्रण"
ReplyDeleteकश्मीरी लाल गर्ग और उनके परिवार की अथक मेहनत का परिणाम है डबवाली की प्रसिद्ध रोस्टेड बर्फी, जो अब सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि विदेशों तक भी अपनी मिठास से लोगों के दिलों में घर कर चुकी है। कश्मीरी लाल ने 12 साल की उम्र से बर्फी बनाने की शुरुआत की और अपने पिता से सिखे गए इस कुटुंबी धंधे को न केवल संजोया, बल्कि उसे एक ब्रांड बना दिया। आज उनकी यह बर्फी डबवाली के बाहर भी एक पहचान बन चुकी है, और उनकी दुकान पर आने वाले ग्राहक हर रोज़ 25 से 30 किलो बर्फी की मांग करते हैं, जो हर बार तुरंत बिक जाती है।
इस सफलता के पीछे केवल अच्छे स्वाद का नहीं, बल्कि उस कड़ी मेहनत और समर्पण का हाथ है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा है। कश्मीरी लाल गर्ग के बेटे, रोहित गर्ग ने भी इस कला को अपने हाथों में लिया है और परिवार की यह धरोहर अब दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुकी है।
जो बर्फी मात्र 500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकती है, वह न केवल त्यौहारों में गिफ्ट पैकिंग के लिए आदर्श बन चुकी है, बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों के लिए एक अनमोल तोहफा बन चुकी है। कश्मीरी लाल गर्ग और रोहित गर्ग के इस प्रयास की सराहना हर उस व्यक्ति को करनी चाहिए, जो मेहनत, समर्पण और परिवार की धरोहर के प्रति सच्ची निष्ठा रखता है।
इसी मेहनत और प्रेरणा से हम सबको यह सीख मिलती है कि मेहनत और रचनात्मकता के साथ कुछ भी संभव है, और अच्छे स्वाद की कोई सीमा नहीं होती।